
दैनिक राजस्थान समाचार न्यूज संवाददाता – प्रदीप कुमार शर्मा, गढटकनेत-अजीतगढ़। प्राचीन एवं चमत्कारिक आसपुरा धूणी धाम में चल रहे 108 कुण्डात्मक 9 दिवसीय श्री गोपाल महायज्ञ की भव्यता और श्रद्धा का आलम पूरे क्षेत्र में छाया हुआ है। 9 नवम्बर को विशाल एवं भव्य कलश यात्रा के साथ प्रारंभ हुए इस महायज्ञ की चर्चा हर जुबान पर है।
आसपुरा धूणी धाम सदियों से संत-महात्माओं और तपस्वियों की तपोस्थली रहा है। विश्वकल्याण एवं मानवसेवा के उद्देश्य से आयोजित इस यज्ञ में प्रतिदिन 7 लाख आहुतियाँ डाली जा रही हैं। यज्ञ के दूसरे दिन राजस्थान सरकार के यूडीएच मंत्री झाबर सिंह खर्रा एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री महादेव सिंह खंडेला की उपस्थिति विशेष आकर्षण का केंद्र रही।
महायज्ञ के दूसरे दिन गणपति पूजन, मातृका पूजन, वास्तु पूजन, मंडप पूजन, योगिनी पूजन, क्षेत्रपाल एवं नवग्रह पूजन सहित अरणि मंथन जैसे धार्मिक अनुष्ठान संपन्न हुए। यज्ञ आचार्य चिरंजीवी शास्त्री, यज्ञ ब्रह्मा राजकुमार शास्त्री, वैदिक श्रीराम शास्त्री तथा आयोजन प्रमुख हरिदास महाराज सहित अन्य विद्वानों के सान्निध्य में यज्ञ कार्यक्रम अत्यंत कुशलता से संचालित किया जा रहा है।
महंत गोपालदास महाराज ने प्रधान कुंड में मुख्य यजमान जोड़े बाबूलाल परिवार के साथ अग्नि स्थापना कर वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच यज्ञ की विधिवत शुरुआत की। कुल 108 हवन कुंडों पर 251 यजमान जोड़े प्रतिदिन सुबह 9 से 12 बजे तक तथा दोपहर 2 से शाम 5 बजे तक पुरुष सूक्त व गोपाल सहस्रनामावली के मंत्रों से आहुतियाँ अर्पित कर रहे हैं।
भक्तों की सेवा के लिए विशाल भण्डारा पंगत-प्रसादी की व्यवस्था की गई है, जिसमें प्रतिदिन लगभग 10 हजार श्रद्धालु प्रसादी ग्रहण कर रहे हैं। भण्डारे में 60–65 लोगों की टीम निरंतर भोजन निर्माण में जुटी है। भोजनशाला में 10 क्विंटल चीनी, 4 क्विंटल बेसन, 30 पीपा घी, 35 टीन तेल, 10 बोरी आलू, 5 क्विंटल फल सहित चावल, टमाटर, धनिया व मसालों का उपयोग किया जा रहा है।
हलवाई झाबरमल और फूलचंद के अनुसार रविवार तक 50 क्विंटल लड्डू तैयार किए जा चुके हैं। भोजन की स्वच्छता पर विशेष ध्यान देते हुए मशीनों से आटा गूंथा जा रहा है तथा आलू छीलने की व्यवस्था भी मशीनों से की गई है। प्रतिदिन सुबह 5 क्विंटल फलों और 3 क्विंटल दूध से फलाहार तैयार कर पंडितों व साधु-संतों को वितरित किया जा रहा है।
पूरे धाम परिसर में भक्ति, श्रद्धा और वैदिक मंत्रों की गूंज से वातावरण पवित्र हो उठा है। आसपुरा धूणी धाम की यह यज्ञ परंपरा क्षेत्र की आध्यात्मिक चेतना और सांस्कृतिक विरासत को जीवंत बनाए हुए है।




